To bring to life...
all those stray, abandoned, wispy thoughts that are continually taking form of some story...
all those stories... which don't get to see the light of the day just 'cos they aren't big enough to fit the standards...



Thursday 1 August 2013

Faith

The Eastern Comedian

'The Eastern Comedian'  was a well-known name in the alleys of Kolkata in the early 20th century. He used to do his shows for free and to entertain poor people. One day, he was noticed by some European tourists who were amazed by how he used his bodily gestures to convey a situation hilariously. These tourists took back the memories of his amazing performance with them. 

Soon, he was signed up by a popular European theater house. The signing amount was a meager one, but money did not matter to our 'Teko Buro' -a name he was fondly given by the people back home when he had done a hilarious caricature of a bald old man. He used cheap props to look like the old man, and it emerged out as one of his funniest gigs. (Teko Buro means 'a bald old man' in Bengali)

His European tour became a success, and he went on to do shows in other countries. People loved The Eastern Comedian. They enjoyed when he tried to offend the rich with his mimicry.He was touted to become a legend, until one night, he experienced a cerebral attack, that left him paralysed for the next decade. By the time he was fit to perform, the newer generation wouldn't recognize him anymore. Heartbroken, he returned to Kolkata and took up a job as a clerk.

Decades passed by. Our comedian was an old man now. He had a hunchback posture (the effects of the paralysis) and clear signs of old age. People called him 'Teko Buro' because of his appearance now. Nobody seemed to remember him as 'The Eastern Comedian' anymore. 

But he had faith in himself that if given a chance, he'd gleefully reprise the role of 'Teko Buro' without any props this time. 


@i1_2ramble



Hereafter


“तुम? पर मैंने तोह...”  ने एक मायूसी भरे स्वर में कहा और फिर उसने आकाश कि ओर देखा |

“ हा हा! उन चील और गिद्धों को देख रहें हों | घबराओ नहीं ये तुम्हारा भोज नहीं करते | इन्हें नरम मांस का चाव है, मृत |” उन पाँचों में से एक ने कहा, जो शायद उनका नेता था |

आकाश सम्पूर्णतः बादलों से ढाका हुआ था | घुमड़ते, गरजते, डरावने काले बादल और उनके बीच एक छेद जिससे सूर्य कि तीक्षण किरणे धरती पर पड़ रही थी | इस दृश्य ने  को असमंजस में दाल दिया | वह एक अनंत मरुस्थल था, जहाँ कहीं-कहीं पे पेड़ थे |

“पर तुम तो वैसे नहीं हों जैसा उन्होंने लिखा था |”  डर और हैरानी में पड़ गया पाँचों हँसने लगे | हँसी के कारण उनके भयानक चेहरे और भी रक्त-रंजित हो गए |

 ने फिर कहा “उन्होंने तुम्हें अच्छा और सुंदर दर्शाया था अपनी पोथियों में |”

वे सब फिर हँसे | उनमे से एक कि आँखें प्रज्वलित हों उठी और वह बोला “ ‘जैसा उन्होंने हमें लिखा था’? तुम मंदबुद्धि मानव, कब त्यागो ये भोंदुपन?”

“हम वैसे ही प्रत्यक्ष होते हैं जैसा हमें स्मरण करने वाला मानता है” शांत नीर जैसी आँखों वाले ने कहा |

उन पाँचों पर  ने अपनी नज़र फिराई और एक लंबी साँस छोड़ते हुए कहा “अब क्या?”

मुख्य नेता ने कहा “अब दण्डित होने के लिए तयार हों जाओ |”

“पर मैंने तो तुम्हें मदद के लिए बुलाया था”  ने भयभीत हो कर कहा |

“हमारे लिए कुशब्दों का प्रयोग किसी भी कोण से त्राहिमाम नहीं प्रतीत होता” नए वाले, जिसकी आँखों में प्रचंड वायु वेग था तूफान कि तरह आगे आकर बोला |

“और मैं करता भी क्या? मेरा विश्वास मर चूका था |”  ने भरे स्वर में कहा |

“विश्वास? किसपे? मूर्ख! हम विश्वास के लिए नही हैं | हम पूजनीय हैं |” गरजती आँखों वाले नेता ने कहा |

“तो कौन?”  ने पूँछा |

पाँचों ने एक स्वर में कहा “तुम्हारा स्वयं |”

“नहीं हो सकता, कैसे? बताओ? क्रपा कर बताओ!” ग ने हाथ जोड़ते हुए कहा |

“हम तुझे रास्ता दिखाने नहीं बल्कि दंडित करने आयें हैं” उसने अपनी कमर से एक भीमकाय वज्र निकाला और रण-हुंकार भरते हुए कहा |

“मैं तो अहिंसक हूँ, मैं नहीं लडूंगा”  ने एक कदम पीछे हटकर, घबराहट में कहा |

“हमसे तो तू कभी लड़ भी नहीं सकता कायर, तेरा स्थान नहीं है... रुक कहाँ भाग रहा है!”

ग भागने के लिए मुड़ा | उसी समय आकाश के उस छिद्र में से, जहाँ से सूर्य चमक रहा था वर्षा कि एक बूँद उस मरुभूमि पर गिरी | ठीक  के पैरों के सामने | उसका का पाँव उस बूँद के द्वारा बनाये सूक्ष्म कीचड पर पड़ा | वह बुरी तरह रपट खाकर, मुहं के बल धरती पे गिराता है | कुछ क्षणों बाद वह उस झटके से उबरता है |  हाथों के सहारे उठा और घुटनों के बल बैठ गया | उसका शरीर धूल से सन गया था तथा माथे से खून भी बह रहा था |

“ये नहीं हों रहा... यह नहीं हों सकता... मुझे विश्वास...”  यह बोल ही रहा था कि उनके अधिनायक ने अपने वज्र से कि छाती पे बिजली गिराई |

 सूखे पत्ते कि तरह धरती पे बिछ गया | उनके सरदार ने पास आकर  के गाल पे वज्र से एक अंतिम प्रहार किया...

ग अपने गाल से एक कोमल हाथ को हटता हुआ देखता है, जिसके तुरंत बाद उसे गर्मी और चुभन महसूस होती है | वह उसकी प्रेमिका का थपड़ था जो उसे होश में लाने के लिए जड़ा गया था | अपने कूल्हों कि ताकत लगा वह बैठता है | 

फ़र्श पर सफ़ेद चूर्ण और गोलियाँ बिखरी पड़ी हैं |  देखता है कि उसकी छाती पे एक बड़ा इंजेक्शन घुपा हुआ है | उसकी बाईं तरफ़ उलटी और झाग से सनी हुई है तथा उसका निचला हिसा उसी के पेशाब में भीगा हुआ है |

 एक जोर कि चिंघाड़ मारता है और रोते हुए अपनी प्रेमिका से चिपट जाता है “oh! I am sorry! please… do ho hont lose your faith on me… aah aah aah please…”

@gairo0

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